मानने के लिए वेलेंटाइन डे आज
मानने के लिए वेलेंटाइन डे आज
लो उसी जगह हम फ़िर आए बैठे हैं।
तेरे दीदार से बुझती थी जहां मेरी तड़फ की आग
आज हम उसी बाग में अकेले आए बैठे हैं।
पूछते हो हमसे! क्या क्या याद है तुम्हे?
दो घड़ी बैठो तो सही
हम तो यादों का अंबार लगाए बैठे हैं।
जो मुश्किल से मिलते थे महीनों बाद
उनसे हम आज भी उम्मीदें हजार लगाए बैठे हैं।
जिस पेड़ पर लिखें थे दोनों ने एक दूजे के नाम
हम उसी से आज अकेले सर लगाए बैठे हैं।
वेलेंटाइन डे
वेलेंटाइन तो एक बहाना है दस्तूर-ए-मोहब्बत का
उम्मीद-ए-दीदार तुझसे हर रोज़ लगाए बैठे हैं।
समंदर सा गहरा है इश्क़ उसका इसमें हैरत नहीं,
डूबने के जिद में ही तो किनारे पे आशियाना बनाए बैठे हैं।
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