वक्त बदल रहा है-नई कविता
नारी तुम गीत हो |
नारी तुम गीत हो,
सृष्टि का संगीत हो।
तुमने ही विधाता का
मूर्त सार दिया।
ममता,करुणा,
दया,वात्सल्य,
हर रूप में,
प्रेम को विस्तार दिया।
तुमने ही,
सृष्टि क्रम नित बढ़ाया।
सृष्टि को सुंदर से,
सुंदरतम बनाया।
पर यह क्या?
पुरुष पिंजरे ने,
कैद करने के लिए तुम्हें,
क्या क्या घृणित खेल रचाया,
सती के नाम पर,
तुम्हें जलाया,
कभी डायन बता
खूब सताया।
सदियों शिक्षा से वंचित रखा,
तुम्हें अधिकार विहीन किया।
संपति सा समझा,
मोल तोल भी खूब किया।
प्रसव पीड़ा सहकर
जिसको जन्म दिया तुमने,
उस पुरुष ने ही,
सदियों शोषण तुम्हारा किया।
यदि नहीं...,
तो बताओ!
किसने तुम्हें अबला कहा?
किसने तुम्हें जीवित जलाया?
किसने उम्रभर,
विधवा जीवन जीने को
मजबूर किया?
किसने तुम्हें शिक्षा,
संपति विहीन किया?
कभी धर्म,
कभी परम्परा के नाम,
कभी रीति रिवाजों,
प्रथाओं के नाम
शोषण तुम्हारा खूब किया।
सदियों संघर्षों के बाद
काल ने करवट ली
हुआ समस्याओ का समाधान
मिट गए वो सब विधान।
जब नया विधान आया।
नारी शिक्षित हुई,
सम्मानित हुई,
देश में जब संविधान आया।
संविधान ने ही तुम्हें,
समानता,स्वतंत्रता,
और न्याय दिया।
अभिव्यक्ति की दी आजादी,
आवश्यक हर अधिकार दिया।
संविधान से ही सुरक्षित है,
स्वतंत्र अस्तित्व तुम्हारा।
इस पर सदा अभिमान करो
अपने हक-अधिकार पाने को
प्राप्त संविधान का ज्ञान करो।
वक्त बदल रहा है - कविता
वक्त बदल रहा है-नारी |
घना था जो बहुत,
अंधेरा वो छट रहा है।
तेरे सपनों का सूरज,
नित नित बड़ रहा है।
रूढ़ियों की बेड़ियां
टूट रही हैं।
परम्पराओं के जाल
कट रहे हैं।
पुरुष पिंजरा तोड़ दे,
उन्मुक्त गगन में उड़ने दे।
स्वप्न सब तेरे साकार होंगे,
लाख गहरे हो,
तो क्या?
दरिया सब पार होंगे।
बंदिशे टूट रही हैं।
पर्दे गिर रहे हैं।
जो सीमित था बहुत
दायरा वो
अब बड़ रहा है।
वक्त बदल रहा है।
बदल रहा है......।
Bablesh kumar
Udaipur, Rajasthan
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