जमीर जिंदा रख

बाग ए बहार बर्बाद ना हो जाए
बोलने का जज़्बा जिंदा रख
गर तू जिंदा है तो
जमीर को भी जिंदा रख।

जहां घना है रात सा अंधेरा
उठा के वहां अब चांद को रख
दिनभर चली जहां बाते नफ़रत की तमाम
उसी जगह तू बात मोहब्बत की
शाम को रख।

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