एक गम तो ये है कि
कोरोना से डरे हुए हैं लोग।
दूसरा यह है कि अपने ही घर में फंसे हुए हैं लोग।
जो दिन तो क्या रात को भी नहीं टिकते थे ठीक से घर पर
वो दिन रात अब अपने घर में ही जमे हुए हैं लोग।
हालात कभी ऐसे भी होंगे सोचा नहीं था।
अपने ही घर के लोगों से एक मीटर दूर खड़े हुए हैं लोग।
प्रकृति ने तमाचा मारा है
मनुष्य के गाल पर
क्यों बर्बाद करने में हद से ज्यादा पीछे पड़े हुए हैं लोग।
हर इंसान की इच्छा है कि हम आजाद रहे
फिर क्यों पंछियों को पिंजरे में जकड़े हुए हैं लोग।
मासूम जीवों को मारकर खाने वालों, अब तो दर्द समझो।
यह तुम्हारे ही भाई हैं,अस्पतालों में जो लेटे हुए हैं लोग।
भयंकर विनाश किया प्रकृति का मानव की भूख ने,
आज अपने ही बिछाए बारूद पर खड़े हुए हैं लोग।
जाति का जहर घोलकर सदियों शोषण करने वालों,
देखो! कैसे आज अपने ही घर में अछूत बने हुए हैं लोग।
अब ऐसा नहीं कि
जो करेगा वही भरेगा,
एक की गलती सब भुकतेंगे।
क्योंकि मानो या ना मानो
सब आपस में जुड़े हुए हैं लोग।
यह दौलत,हथियार और सेनाओं की धमकियां देना अब छोड़ दो।
इशारा बस इतना ही काफी है कि एक विषाणु के आगे लाचार खड़े हुए हैं लोग।
बबलेश कुमार
उदयपुर राजस्थान
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