खता -ए- मोहब्बत

वफ़ा हम आज भी
इस क़दर निभा रहे हैं।
तुम्हारी यादों का बोझ,
दिल से उठा रहे हैं।


खता-ए-मोहब्बत,
मिलकर की थी दोनों ने।

मगर दर्द हम
अकेले उठा रहे हैं।...BLK

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गुज़रे जिसके साए में 
जिंदगी सारी।
ऐसी सोहबत डूंढ़ रहा हूं।
मेरी नादानी तो देखो ,
दौर -ए-नफ़रत में
मोहब्बत डूंढ़ रहा हूं।

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