तेरी नज़र का तीर ऐसे पार हो गया
मैं सलामत ना रहा, शिकार हो गया
ख्यालों में आ के सताया मुझे उसने
मैं हकीकत में आज बेकरार हो गया।
तेरी नज़र का तीर ऐसे पार हो गया
मैं सलामत ना रहा, शिकार हो गया
मैं सलामत ना रहा, शिकार हो गया
ख्यालों में आ के सताया मुझे उसने
मैं हकीकत में आज बेकरार हो गया।
मैं सलामत ना रहा, शिकार हो गया
तलब तेरी एक अरसे से थी मुझे
ओर बड़ गई बेताबी,जो तेरा दीदार हो गया।
तेरी नज़र का तीर ऐसे पार हो गया
मैं सलामत ना रहा, शिकार हो गया
तबीयत जो कलतक तो
अच्छी थी मेरी,
हाल पूछा जो उसने आज
मैं बीमार हो गया।
बाग़-ए-वीरान था मैं जाने कबसे,
छुआ जो उसने आज
मैं गुल-ए-गुलजार हो गया
तेरी नज़र का तीर ऐसे पार हो गया
मैं सलामत ना रहा,शिकार हो गया।
बबलेश कुमार
उदयपुर
मेरी दूसरी गज़ल - उम्मीद है पसंद आएगी आपको🙏🙏
हाल पूछा जो उसने आज
मैं बीमार हो गया।
बाग़-ए-वीरान था मैं जाने कबसे,
छुआ जो उसने आज
मैं गुल-ए-गुलजार हो गया
तेरी नज़र का तीर ऐसे पार हो गया
मैं सलामत ना रहा,शिकार हो गया।
बबलेश कुमार
उदयपुर
मेरी दूसरी गज़ल - उम्मीद है पसंद आएगी आपको🙏🙏
3 टिप्पणियाँ
Nice बबलेश भाई
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंWah kya baat hai 👌💯
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