उंगलियां हजार उठने लगी है सच बोलने पर - शायरी
उंगलियां हजार उठने लगी है,
सच बोलने पर।
यक़ीन बहुत करने लगे हैं लोग
अब झूठ पर।
दोस्त भी दूर हो गए मेरे
जब देखा सच बोलकर।
वो दिल दुश्मनों का भी जीत रहा है,
झूठ बोलकर।
सच सिसक रहा है - शायरी
सच सिसक रहा है,रो रहा है।
करे क्या?
ऐतबार जो हो गया है,
लोगों को झूठ पर।
खुशी से आबाद था मैं कल तक
कुछ ना बोलकर।
दुश्मन दरवाजे पे खड़ा कर लिया
आज सच बोलकर।
मांग ली माफी मैने
अपनी हर एक खता पर।
वो बच निकला हर बार
एक और झूठ बोलकर।
रौनक-ए-महफ़िल-शायरी
रौनक-ए-महफ़िल
गज़ब की सजती है उसकी,
कसम से खूब फेकता है,
दिल खोलकर।
किस किसका ईमान बिक रहा है,
आओ हम भी देखे!
बड़ी भीड़ लगी है,
झूठ की दूकान पर।
बख्शीशे बहुत सी ठुकरा दी मैंने,
सच बोलकर।
उसे शोहरत सम्मान ही नहीं,
सत्ता भी मिल गई झूठ बोलकर।
अब वो आदमी तो नहीं,
कोई फरिश्ता ही होगा।
जो सच बोलेगा यहां
अपनी जान पे खेलकर।
©bableshkumar
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