सितम सियासत का। New Hindi Kavita । Politics Poem

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Sitam siyasat ka। New Hindi Kavita
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पढ़िए वर्तमान राजनीति पर हमारी ये गजल

👉सितम सियासत का - गजल



सितम सियासत का
कहर डहा रहा है।
सच और झूठ अब हमें
अखबार बता रहा है।

कल तक जो सुकून में था
पूछो तो ज़रा इससे
यह शहर खुद जला है
या कोई और जला रहा है।

जिसे कॉलेज में होना था
वो वहां नहीं है अब
वो तो किसी के झंडे में
डंडा फसा रहा है।

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नई ग़ज़ल


हालात बड़े ख़राब है
पर समझदार क्यों चुप हैं।
यही बात तो गूंगा
बहरे को बता रहा है।

बेटी हिफाजत और बेटा
रोटी मांग रहा है।
बाप है कि
राष्ट्रवाद समझा रहा है।

उसे कोई परवाह नहीं
घर तेरा टूटे या दूकान मेरी जले
वो तो मजे से हिंदू मुस्लिम की
दूकान चला रहा है

सियासत से वास्ता ना रख
मुझे और दागदार ना कर
यही बात तो कबसे मुल्क
मज़हब को समझा रहा है।

सितम सियासत का
कहर डहा रहा है।
सच और झूठ अब हमें
अखबार बता रहा है।

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