मौसम बदल रहा है

मौसम बदल रहा है

Mosam badal raha hai. Rajniti par kavita/gajal
Mosam badal raha hai 


मोहब्बत की महक थी चमन में
अमन-ए-मौसम बदल रहा है।

उड़ते प्रेम के परिंदे को अब
नफ़रत का नाग निगल रहा है।

कोई सुनकर बेहरा हुआ,
कोई देखकर अंधा है।
अब किसको पूछे कि क्या हो रहा है।

लहूलुहान हुआ क्यू मुल्क मेरा

लाचार लोकतंत्र रो रहा है।


कल तक जो सच बेखौफ बोल रहा था
क्या हुआ ऐसा जो आज बयान बदल रहा है।

एक हाथ में झंडा,एक में डंडा लिए वो जिधर चल रहा है।
उसे कौन समझाए कि वो किधर चल रहा है।

रंग -ए-मजहब के नाम पर लहू बहाने वाले जरा पहचान के बता 

ये सड़क पे किस मजहब का खून बह रहा है।



यह खामोशी तेरी लाज़मी नहीं जवाब दे,


अब क्यू छुपा के नज़रे खामोश निकल रहा है।

बबलेश कुमार✍

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ